
कालिदास का जीवन परिचय | Kalidas Biography In Hindi | Kalidas ka Jeevan Parichay in Hindi
भारत के विख्यात कवि और नाटकार कालिदास अपनी पौराणिक कथाओ और दर्शन को आधार मानकर राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले माने जाते है | ये अपनी कल्पनाशक्ति और अभिव्यंजना के कारण भारत में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर चुके है | इनके खण्डकाव्य में जो वास्तविकता झलकती है | वो किसी अन्य लेखको में बहुत कम देखने को मिलती है | इन्हें हिंदी साहित्य में स्वर्ण स्थान प्राप्त है |
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | कालिदास |
जन्म (Date of Birth) | पहली से तीसरी शताब्दी ईस पूर्व के बीच माना जाता है। |
मृत्यु (Date of Death) | ज्ञात नहीं |
जन्म स्थान (Birth Place) | कविल्ठा |
पिता का नाम (Father Name) | कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं प्राप्त है | |
माता का नाम (Mother Name) | कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं प्राप्त है | |
उपाधि | महाकवि |
खण्डकाव्य (कविता) | मेघदूतम् और ऋतुसंहार। |
नाटक | अभिज्ञान शाकुन्तलम्, विक्रमोवशीर्यम् और मालविकाग्निमित्रम् |
महाकाव्य (कविता) | रघुवंशम् और कुमारसंभवम्। |
जाति (Caste) | ज्ञात नहीं |
पेशा (Profession) | संस्कृत कवि,नाटककार |
भाषा (Language) | संस्कृत |
शिक्षा (Education) | इन्होने मूलतः संस्कृत विषय की शिक्षा ग्रहण की थी | |
विषय-सूची
प्रस्तावना
कालिदास जी वैदर्भी रीति के कवि थे | ये आदर्शवादी परम्परा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखते थे | ये संस्कृत भाषा के महान नाटककार थे और बहुत ही कोमल स्वभाव के कवि थे इन्हें हिंदी साहित्य में बहुत रूचि थी कुछ विद्वान इनके गुणों को देखेते हुए इन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते है | ये अपनी कलाकृतियों में अपना सर्वस्व तक न्योछावर करने के लिए सदैव तैयार रहते है | इन्हें बहुत से विद्वान गुप्तवंश के शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के समकालीन बताते है | कालिदास जी विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे विक्रमादित्य उज्जयिनी के राजा थे | जिन्होंने ईसा से 57 वर्ष पूर्व विक्रम संवत चलाया था |
कालिदास का जन्म (birth of Kalidasa)
कालिदास जी के जन्म के बारे में काफी मतभेद है | यह मूलत: पता नहीं चल सका कि कालिदास का जन्म किस काल में हुआ परन्तु कुछ विद्वानों का कहना है कि कालिदास छठी शताब्दी के बाद के नहीं है अर्थात् इनका जन्म छठी शताब्दी के पहले माना जाता है |
कालिदास का जन्म स्थान (Birth place of Kalidas)
कालिदास के जन्म स्थान के बारे में भी विवाद है | मेघदूतम् में उज्जैन के प्रति उनके प्रेम और अनुराग को देखते हुए कुछ लोग उन्हें उज्जैन का निवासी मानते है | और कुछ विद्वान यह सिध्द करने में लगे थे कि उनका जन्म कविल्ठा ग्राम में हुआ था जो उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है |
कालिदास का असली नाम (Kalidas real name)
कालिदास का असली नाम महाकवि कालिदास है |
कालिदास के माता – पिता (Kalidasa’s parents)
इनके माता – पिता के नाम के बारे में कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं प्राप्त है इनके माता – पिता के नाम को खोजने के प्रयास में कई विध्दान लगे रहे किन्तु किसी ग्रन्थ वेद आदि में भी नहीं मिला |
कालिदास की शिक्षा (Kalidasa’s education)
कालिदास की प्रारम्भिक शिक्षा कविल्ठा चारधाम यात्रा मार्ग में गुप्तकाशी में स्थित कालिमठ मन्दिर के पास स्थित विद्यालय में पूरी हुई थी | कविल्ठा में सरकार ने कालिदास की प्रतिमा स्थापित कर एक सभागार का भी निर्माण करवाया है जहाँ पर हर साल जून माह में तीन दिनों तक गोष्ठी का आयोजन होता है जिसमे देशभर के विद्वान भाग लेते है | इन्होने मूलतः संस्कृत विषय की शिक्षा ग्रहण की थी |
कालिदास के गुरु का नाम (Name of the Guru of Kalidas)
कालिदास के गुरु उनकी पत्नी विद्योत्तमा थी जिन्हें उन्होंने अपना गुरु माना है |
कालिदास का नाम कालिदास क्यों पड़ा?
देवी काली के उपासक होने के कारण कालिदास का नाम कालिदास पड़ा |
कालिदास का विवाह और ज्ञान प्राप्ति
दो विद्वान विद्योत्तमा से अपमानित होने के कारण उसकी शादी किसी मूर्ख व्यक्ति से करना चाहते थे | जो एक दिन भ्रमण पर गये और उन्होंने देखा कि कालिदास जिस डाल पर वैठे थे उसी को काट रहे थे विद्वानों ने सोचा इससे बड़ा मूर्ख व्यक्ति कौन होगा उन्होंने राजकुमारी के साथ विवाह का प्रालोभन देकर उसे नीचे उतारा और कहा तुम अपने नेत्र बंद करके मौन होकर जो मैं कहूँगा उसे इशारे से राजकुमारी के कहोगे तथा उनके प्रश्नों के उत्तर दोगे कालिदास ने कहा ठीक है | विद्वान उन्हें राजकुमारी विद्योत्तमा के पास ले गए राजकुमारी का प्रस्ताव था | कि जो उन्हें शास्त्र विद्या में हराएगा वह उसी के साथ शादी करेगी तो विद्वानों ने कहा राजकुमारी जी इससे प्रश्न पूछे परन्तु इशारे से क्योकि यह इशारे से ही बात करता हैं |
राजकुमारी ने एक अगुँली दिखा कर अपना पहला प्रश्न पूँछा कि ब्रह्म एक है तो कालिदास को लगा वह उसकी एक आँख फोड़ देगी कालिदास ने दो अगुँली दिखाई कि मैं तुम्हारी दोनों फूड दूँगा तब विद्वानों ने कालिदास के बात को घुमाकर कहा कि एक ब्रह्म से कैसे पूरी सृष्टि चलेगी दो ब्रह्म की आवश्यकता पड़ेगी |
तो राजकुमारी ने अपना दूसरा प्रश्न पूँछा पाँच उगुँली दिखाकर कि पाँच पंच तत्व है – आकाश, वायु, अग्नि, पृथ्वी, जल तो कालिदास को लगा वह थप्पड़ मारेगी तो उन्होंने उत्तर में राजकुमारी को घूसा दिखा दिया कि तुम मुझे थप्पड़ मारोगी तो मैं घूसा मारुगाँ | चेहरा बिगड़ जायेगा तो विद्वानों ने कालिदास की बातो को घुमायाँ और कहा कि ये कह रहे है कि सब एक ही में विलीन है | अलग – अलग नहीं है | राजकुमारी खुश हुई और कालिदास से विवाह कर लिया जब वह उनके घर आयी तो वहाँ ऊँट की आवाज सुनाई दी तो विद्योत्तमा ने कहा कि ‘किमेत्त‘ कालिदास ने उत्तर दिया ऊँट है तो विद्योत्तमा जान जाती है | कि ये अनपढ़ है और उन्हें ठुकरा देती है | और कहती है | जब ज्ञान प्राप्त करके आओगे तो अपना लेगे कालिदास चले जाते है और ज्ञान अर्जित करके लौटते है तो कहते है | कपाटम् उद्घाटय सुन्दरी (दरवाजा खोलो प्रिय) तो विद्योत्तमा कहती है कि कोई विद्वान आये है | जब देखती है | तो खुश हो जाती है | और उन्हें फिर अपना लेती है |
कालिदास की पत्नी का नाम
कालिदास की पत्नी का नाम विद्योत्तमा था |
भारत का शेक्सपियर
भारत का शेक्सपियर उपनाम से संस्कृत के महाकवि कालिदास को जाना जाता है विलियम शेक्सपियर जन्मे इंग्लैण्ड के इंग्लिश कवि के नाम से प्रेरित है |
कालिदास की कृतियाँ
कालिदास की मुख्य रूप से केवल सात कृतियाँ है |
जिसमे से तीन नाटक
- अभिज्ञानशाकुन्तल
- विक्रमोर्यवशियम्
- मालविकाग्निमित्रम्
दो महाकाव्य –
- रघुवंशम्
- कुमारसंम्भव
और दो खण्डकाव्य –
- मेघदूतम्
- ऋतुसंहार
कालिदास की नाटक
1. मालविकाग्निमित्रम्
यह कालिदास की प्रथम रचना है जिसमें राजा अग्निमित्र की कहानी है | अग्निमित्र एक निर्वासित नौकर की बेटी के चित्र से प्रेम करने लगता है | जब यह बात अग्निमित्र की पत्नी को पता चला तो वह मालविका को जेल में डलवा देती है मगर संयोग से मालविका राजकुमारी साबित होती है | और उसके प्रेम समबन्ध को स्वीकार किया जाता है |
2. अभिज्ञानशाकुन्तल
यह कालिदास जी कि दूसरी रचना है | यह जग भर में सबसे प्रसिध्द है | इसमे रजा दुष्यंत की कहानी है जो वन में एक परित्यक्त ऋषि की पुत्री शकुन्तला से प्रेम करने लगता है |दोनों जंगल में गंधर्व विवाह कर लेते है | राजा दुष्यंत अपनी राजधानी लौट आते है | इसी बीच दुर्वासा ऋषि शकुंतला को शाप दे देते है | जिसके कारण उसने ऋषि का अपमान किया है वह ही उसे भूल जाए यह बात सुनकर शकुन्तला बहुत दुखी हुए और उसने ऋषि के पैरो को पकड़ कर रोने लगी तब ऋषि ने उसके शाप को बदल दिया कि जब ये अंगूठी राजा को दिखाओगीतो सब याद आ जाएगा किन्तु वह अंगूठी रास्ते में खो जाती है तो शकुन्तला रूठ जाती है और अपने महल लौट जाती है | धीरे – धीरे राजा दुष्यंत सकुन्तला को भूलने लगते है तब एक मछुआरे ने वह अंगूठी पायी थी जो राजा को दिखाने लगा तो राजा को सब याद आ गया और उन्होंने शकुन्तला को अपना लिया |
3. विक्रमोर्यवशियम्
यह रहस्यों से भरा नाटक है इसमे पुरूरवा और उर्वशी के प्रेम का वर्णन है |
कालिदास का महाकाव्य
1. कुमारसंम्भव
कुमारसंम्भव शिव – पार्वती की प्रेमकथा और कार्तिकेय के जन्म की कहानी है |
2. रघुवंशम्
इसमे रघुकुल के राजाओ का सम्पूर्ण वर्णन है |
कालिदास का खण्डकाव्य
1. मेघदूतम्
यह एक गीतिकाव्य है जिसमे यक्ष द्वारा मेघ से सन्देश ले जाने की प्रर्थना है |
2. ऋतुसंहारम्
इसमे ऋतुओ का विस्तार पूर्वक अध्यन किया गया है |
तथा इनकी कुछ अन्य रचनाएँ भी है | जैसे – कालामृतम् आदि |
कालिदास की मृत्यु
कालिदास की मृत्यु के बारे में कोई सही प्रमाण नहीं मिला है |
कालिदास की भाषा
कालिदास की भाषा सरल, मधुर, सबोध है जो उनकी रचनाओं में झलकती है |
कालिदास की शैली
कालिदास ने अपनी रचनाओं में बखूबी से संगीतात्मक शैली का प्रयोग किया है |
कालिदास का साहित्यिक परिचय
कालिदास जी प्रतिभा के बहुत ही धनी व्यक्ति थे ये बहुत सरल स्वभाव के और संस्कृत के विद्वान थे | कालिदास अपनी साहित्यक विशेषताओ को अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत करते है उनकी रचनाओं में सदैव प्रेम का वर्णन है जिससे यह पता चलता है कि कालिदास जी बहुत प्रसन्न और प्रेमी विचारों के थे | उनकी रचनाओं में वास्तविकता की झलक दिखाई देती है | जो पढ़ते है ऐसा लगता है कि आँखों में अंकित हो रहा है |
कालिदास का हिंदी साहित्य में स्थान
कालिदास को हिंदी साहित्य में स्वर्ण स्थान प्राप्त है | जो किसी अन्य लेखक को बहुत कम प्राप्त है |
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