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मेरा प्रिय कवि : तुलसीदास पर निबंध – My favorite Poet: Tulsidas In Hindi

May 7, 2022 by Atul Maurya Leave a Comment

इस आर्टिकल में हम मेरा प्रिय कवि : तुलसीदास पर निबंध पढेंगे, इससे पहले हमने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर निबंध और पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध पढ़ चुके हैं, तो चलिए विस्तार से पढ़ते हैं My favorite Poet: Tulsidas In Hindi –

सम्बन्धित शीर्षक —

अगर आपके परीक्षा में नीचे दिए गए सम्बन्धित शीर्षक आते हैं तो आप इस निबंध को लिख सकते हैं |

  • लोकनायक तुलसीदास
  • समन्वय के प्रतीक : तुलसीदास
  • अमर कवि तुलसीदास
  • अपना (मेरा) प्रिय कवि
  • रामकाव्यधारा के प्रमुख कवि
  • मेरा आदर्श महापुरूष
  • गोस्वामी तुलसीदास और रामचरितमानस
  • समन्वय साधक तुलसीदास
  • रामभक्त तुलसीदास ।

विषय-सूची

  • मेरा प्रिय कवि : तुलसीदास पर निबंध – mera priy kavi tulasidas par nibandh
  • प्रस्तावना
  • जन्म की परिस्थितियां
  • तुलसीदास : एक लोकनायक के रूप में
  • तुलसी के राम
  • तुलसीदास की निष्काम भक्ति-भावना
  • तुलसी का समन्वय
  • तुलसी के दार्शनिक विचार
  • तुलसीकृत रचनाएँ है
  • काव्यगत विशेषताएं
  • उपसंहार

मेरा प्रिय कवि : तुलसीदास पर निबंध – mera priy kavi tulasidas par nibandh

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना
  2. जन्म की परिस्थितियाँ
  3. तुलसीदास: एक लोकनायक
  4. तुलसी के राम
  5. तुलसी की निष्काम भक्ति-भावना
  6. तुलसी का समन्वय
    1. सगुण-निर्गुण का समन्वय
    2. कर्म, ज्ञान एवं भक्ति का समन्वय
    3. युगधर्म-समन्वय
    4. साहित्यिक समन्वय
    5. सामाजिक समन्वय
  7. तुलसीदास के दार्शनिक विचार
  8. तुलसीदासकृत रचनाएँ।
  9. काव्यगत विशेषताएं।
  10. उपसंहार

प्रस्तावना

संसार में अनेक प्रसिद्ध साहित्यकार हुए हैं, जिनकी अपनी अपनी विशेषताएं है। मेरा प्रिय साहित्यकार या कवि महाकृवि तुलसीदास जी है। मैं यह तो नहीं कहता है मैने बहुत अध्ययन किया है, तथापि भक्तिकालीन कवियों में कबीरा सूर और तुलसी तथा आधुनिक कवियों में प्रसाद पन्त और महादेवी के काव्य का आस्वादन अवश्य किया हैं। इन सभीकवियों के काव्य अध्ययन करते समय अलौकिकता के समक्ष होता रहा हूँ। उनकी का तुलसी के काव्य की मै सदैव नतमस्तक भक्ति – भावना, समन्वयात्मक दृष्टिकोण तथा काव्य – सौष्ठव ने मुझे स्वाभाविक रूप से आकृष्ट किया है । यद्यपि तुलसीदास जी के काव्य में भक्ति भावना की प्रधानता है, परन्तु इनका काव्य कई सौ वर्षों के बाद भी भारतीय जनमानस में रचा-बसा हुआ है और उनका मार्ग दर्शन कर कवि है। रहा है। इसलिए तुलसीदास मेरे प्रिय कवि है |

” प्रभु का निर्भय सेवक था, स्वामी था अपना जाग चुका था, जग था जिसके आगे सपना । प्रबल प्रचारक था जो उस प्रभु की प्रभुता का, अनुभव था सम्पूर्ण जिसे उसकी विभुता का राम छोड़कर और की, जिसने कभी न आमा रामचरितमानस – कमल, जय हो तुलसीदास ॥” – जयशंकर प्रसाद

जन्म की परिस्थितियां

तुलसीदास का जन्म ऐसी विषम परिस्थितियों में हुआ, जब हिन्दू समाज अशक्त होकर विदेशी चंगुल में फंस चुका था। हिन्दू समाज की संस्कृति और सभ्यता प्राय: विजष्ट हो चुकी थी और कहीं कोई उचित आदर्श नहीं था इस युग मैं जहां एक ओर मन्दिरों का विध्वंस किया गया, ग्रामों व नगरों का विनाश हुआ, वही संस्कारों की भ्रष्टता भी चरम सीमा पर पहुँची । इसके अतिरिक्त तलवार के बल पर हिन्दुओं को मुसलमान बनाया जा रहा था । ऐसर्वल धार्मिक विषमताओं का ताण्डव नृत्य हो रहा था और विभिन्न सम्प्रदायों ने अपनी अपनी डफली, अपना-अपना राग अलापना आरम्भ कर दिया था ।

ऐसी परिस्थिति मे भोली-भाली जनता यह समझने में असमर्थ थी कि वह किस सम्प्रदाय का आश्रय ले। उस समय की दिग्भ्रमित जनता को ऐसे नाविक की आवश्यकता थी, जो उसकी जीवन- नौका की पहबार को सँभाल लें। गोस्वामी तुलसीदास ने निराशा के अन्धकार में डूबी हुई जनता के सामने भगवान राम का लोकमंगलकारी रूप प्रस्तुत किया । इस प्रकार उन्होंने जनता मे अपूर्व माशा एवं शक्ति का प्रचार किया | युगटा तुलसी ने विभिन्न मतो, सम्प्रदायों एवं धाराओं का समन्वय अपने ‘रामचरितमानस द्वारा किया। उन्होंने अपने युग को नवीन दिशा, नई गति एवं नवीन प्रेरणा दी। सच्चे लोकनायक के समान उन्होंने बैमनस्स्य की खाई को पाटने का सफल प्रयास किया |

तुलसीदास : एक लोकनायक के रूप में

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का कथन है लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके। क्योंकि भारतीय समाज में नाना प्रकार की परस्पर विरोधी संस्कृतियां, जातिया, आचारनिष्ठा और विचार- पद्धतियाँ प्रचलित है। भगवान बुद्ध समन्वयकारी थे, ‘गीता’ ने समन्वय की चेष्टा की, और तुलसीदास भी समन्वयकारी थे। तुलसीदास जी वास्तव में एक सच्चे लोकनायक थे | क्योंकि उन्होंने कभी किसी समुदाय या मत का खण्डन नहीं किया वरन सभी को सम्मान दिया।

तुलसी के राम

तुलसी उन राम के उपासक थे, जो सच्चिदानन्द परमबह्म थे तथा जिन्होंने भूमि का भार हरण करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया था

जब-जब होई धरम कै हानी। बाढ़हि असुर अधम अभिमानी ।
तब-तब प्रभु धरि विविध सरीरा| हरहिं कृपा – निधि सज्जन पीरा ॥

तुलसी ने अपने काव्य में सभी देवी-देवताओं की स्तुति की है, लेकिन अन्त में वे यही कहते हैं—

माँगत तुलसीदास कर जोरे | वसहिं रामसिय मानस मोरे ॥

निम्न पंक्तियों में भगवान राम के प्रति उनकी अनन्यता और भी अधिक पुष्ट हुई –

एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास |
एक राम घनस्याम हित चातक तुलसीदास ॥

तुलसीदास के समक्ष ऐसे राम का जीवन था, जो मर्यादाशील थे, शक्ति एवं सौन्दर्य के अवतार थे।

तुलसीदास की निष्काम भक्ति-भावना

सच्ची भक्ति वही है, जिसमें आदान-प्रदान का भाव नहीं होता है। भक्त के लिए भक्ति का आनन्द ही उसका फल है। तुलसी का अनुसार-

मो सम दीन न दीन हित तुम्ह सामान रघुबीर।
अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु बिषम भव भीर ||

तुलसी का समन्वय

तुलसी के काव्य की सर्वप्रमुख विशेषता उसमे निहित समन्वय की प्रवृत्ति है |इस प्रवृति के कारण ही वो वास्तविक अर्थों में लोकनायक कहलाए। उनके काव्य में समन्वय के निम्नलिखित रूप दिखाई होते है-

(i) सगुण-निर्गुण का समन्वय- ईश्वर के सगुण और निर्गुण दोनों रूपों का विवाद, दर्शन एवं भक्ति दोनों ही क्षेत्रों में प्रचलित था किन्तु तुलसीदास ने कहा है –

सगुनहि अगुनहि नहि कछु भेदा |
गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा ॥

(ii) कर्म, ज्ञान एवं भक्ति का समन्वय- तुलसी की भक्ति मनुष्य को संसार से विमुख करके अकर्मण्य बनानेवाली नहीं है, अपितु सत्कर्म की प्रबल प्रेरणा देनेवाली है। उनका सिद्धान्त है कि राम के समान आचरण करो, रावण के सदृश कुकर्म नहीं –

भगतिहि ग्यानहि नहि कछु भेदा |
उभय हरहि भव सम्भव खेदा ॥

तुलसी ने ज्ञान और भक्ति के धागे में राम के नाम का मोती पिरो दिया है, जो सबके लिए मान्य है-

हिय निर्गुन नयनन्ह सगुन रसना राम सुनाम |
मनहुँ पुरट सम्पुट लसत तुलसी ललित ललाम ॥

(iii) युगधर्म-समन्वय – भगवान को प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार के बाह्य तथा आन्तरिक साधनों की आवश्यकता होती है। ये साधन प्रत्येक युग के अनुसार बदलते रहते हैं और इन्हीं को युगधर्म की संज्ञा दी जाती है।

तुलसी ने इनका भी समन्वय प्रस्तुत किया है-

कृतयुग त्रेता द्वापर पूजा मख अरु जोग |
जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग ॥

(iv) साहित्यिक समन्वय- साहित्यिक क्षेत्र में भाषा, छन्द, साम्रग्री, रस, अलंकार आदि की दृष्टि से भी तुलसी ने अनुपम स्थापित किया | उस समय साहित्यिक क्षेत्र में विभिन्न भाषाएं विद्यमान थी, विभिन्न छन्दो मे रचनाएं की जाती थी, तुलसी ने अपने काव्य में संस्कृत अवधी तथा ब्रजभाषा का अद्भुत समन्वय किया ।

(v) सामाजिक समन्वय- तुलसी के समय में भारतीय समाज में अनेक प्रकार की विषमताएं तथा कुरीतियां विद्यमान थी । आपस मे भेदभाव की खाई चौड़ी होती जा रही थी । ऊंच-नीच धनी – निर्धन, स्त्री- पुरुष, गृहस्थ त्यागी का ‘अन्तर बढ़ता जा रहा था । रामकथा की चित्रात्मकता रण्वं विषय सम्बन्धी अभिव्यक्ति इतनी व्यापक और सक्षम थी कि उससे तुलसी के ये दोनों उद्देश्य सिद्ध हो जाते है ।

तुलसी के दार्शनिक विचार

तुलसी ने किसी विशेष वाद को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने वैष्णव धर्म को इतना व्यापक कुप प्रदान किया कि उसके अन्तर्गत शैव, शाक्त और पुष्टिमार्गी भी सरलता समाहित हो गए। वस्तुतः तुलसीदास जीभक्त है और इसी आधार पर वह अपना व्यवहार निश्चित करते है | उनकी भक्ति सेवकू – सेव्य भाव की है। वे स्वयं को राम का सेवक और राम को अपना राम का स्वामी मनाते है।

तुलसीकृत रचनाएँ है

तुलसी के 12ग्रन्थ प्रमाणिक माने जाते हैं । ये ग्रन्य हैं- श्रीरामचरित मानस, ‘विनयपलिका’, ‘गीतावली’, ‘कवितावली’, ‘दोहावली, ‘रामललानहरू’, ‘पार्वतीमंगल’, ‘जानकी मंगल, बरवै रामायण’, वैराग्य संदीपनी’, ‘श्रीकृष्ठागीतावली; तथा ‘रामाज्ञाप्रश्नावली’ । तुलसीदास जी की ये रचनाए विश्व – साहित्य की अनुपम निधि है।

काव्यगत विशेषताएं

तुलसीदास का जन्म ऐसे समय में हुआ था, जब हिन्दू समाज मुसलमान शासको के अत्याचारों से मातंकित था। लोगों का नैतिक चरित्र गिर रहा था और लोग संस्कारहीन हो रहे थे । ऐसे में समाज के समाने एक आदर्श स्थापित करने की आवश्यकता थी ताकि लोग उचित अनुचित का भेद समझकर सही आचरण कर सके। यह भार तुलसीदास जी ने संभाला और ‘रामचरित’ मानस’ जैसी अनेक काव्यों की रचना की । इन्होंने निर्गुण एवं सगुण, दोनों धाराओं की स्तुति की।

अपने काव्य के माध्यम से इन्होंने कर्म, ज्ञान स्पे भक्ति की प्रेरणा दी । रामचरितमानस के आधार पर इन्होंने एक आदर्श भारतवर्ष की कल्पना की थी, जिसका सकारात्मक प्रभाव भी हुआ। इन्होंने लोकमंगल को सर्वाधिक महत्व दिया। साहित्य की दृष्टि से भी तुलसी का काव्य अद्वितीय है। इन्होंने विभिन्न छन्दों में रचना करके अपने पाण्डित्य प्रदर्शन किया है।

उपसंहार

तुलसी ने अपने युग और भविष्य, और विश्व तथा व्यक्ति और समाज आदि सभी के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री दी है। तुलसी को आधुनिक पीढ़ी ही नहीं, बल्कि आने वाली प्रत्येक युग की पीढ़ियाँ मूल्यवान मानेगी, क्योंकि मणि की चमक अन्दर से आती है बाहर से नहीं। तुलसीदास जी अपनी इन्हीं सब विशेषताओं के कारण हिन्दी के अमर कवि है। नि: सन्देह इनका काव्य महान है । अतः ये मेरे प्रिय कवि है । अन्त में इनके बारे मे यही कहा जा सकता है

” कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पाँ तुलसी की कला”

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Filed Under: Essay Tagged With: Essay, निबन्ध

About Atul Maurya

मैं लोगो को कुछ सिखा सकू | इसलिए मैं ब्लॉग पर हिंदी में पोस्ट शेयर करता हूँ | एक लाइन में मेरा कहना है कि "आप हमारे ब्लॉग पे आते रहे ताकि जो मैं जानता हूं वह आप को बता सकूं और जो मैं सीखू वह आपको सिखा सकू" || *** धन्यवाद***

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