दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम आपको भक्ति रस की परिभाषा उदाहरण सहित के बारे में पूरी जानकारी बता रहे है | तो चलिए जानते हैं – Bhakti Ras in Hindi.
भक्ति रस की परिभाषा
भगवद गुण सुनकर जब चित्त उसमे निमग्न हो जाता है | तो कहाँ भक्ति रस होता है |
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भक्ति रस के विषय में आचार्यों में बड़ा मतभेद है| प्राचीन आचार्य से देव – विषयक रति मानकर शृंगार रस का ही एक भेद मानते रहे हैं| जहाँ पर परमात्मा – विषयक प्रेम विभाव आदि से परिपुष्ट हो जाता है, वहाँ पर ‘भक्ति रस’ की उत्पत्ति होती है|
भक्ति रस के उपकरण
- भक्त रस स्थायी भाव — भगवान् – विषयक रति |
- भक्ति रस आलम्बन विभाव — परमश्वर, राम, श्रीकृष्ण आदि |
- भक्त रस उद्दीपन विभाव — परमात्मा के अद्भुत कार्य – कपाल, सत्संग, भक्तों का समागम आदि |
- भक्त रस अनुभाव — भगवान् के नाम तथा लीला का कीर्तन, आँखों से आंसुओं का गिरना, गद्गद हो जाना, कभी रोना, कभी नाचना आदि |
- भक्ति रस संचारी भाव — निर्वेद, मति, हर्ष, वितर्क आदि |
भक्ति रस का उदहारण — Bhakti Ras Ki Paribhasha
उदाहरण -1
मेरो तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई |
जाके सर मोर मुकुट, मेरो पति सोई ||
उदाहरण -2
एक भरोसा एक बल, एक आस विस्वास |
एक राम घनस्याम हित, चातक तुलसीदास ||
उदाहरण -3
राम जपु, राम जपु, राम जपु बावरे |
घोर भव नीर – निधि, नाम निज नाव रे ||
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