इस आर्टिकल में हम उत्प्रेक्षा अलंकार – Utpreksha Alankar in Hindi पढेंगे, तो चलिए विस्तार से पढ़ते हैं उत्प्रेक्षा अलंकार – परिभाषा, प्रकार, लक्षण एवं उदाहरण—
विषय-सूची
उप्रेक्षा अलंकार की परिभाषा—
जब उपमेय को उपमान से भिन्न जानते हुए भी उसमें उपमान की सम्भावना की जाती है तब उप्रेक्षा अलंकार होता है।
—:अथवा:—
जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना की जाती है, वहां उप्रेक्षा अलंकार होता है। उप्रेक्षा को व्यक्त करने के लिए प्राय: मनु, मनहुँ, मानो, जानेहुँ, जानो आदि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उप्रेक्षा अलंकार के लक्षण या पहचान चिन्ह—
उपमेय में उपमान की सम्भावना ही उप्रेक्षा अलंकार के लक्षण या पहचान चिन्ह है। (वाचक शब्द— मनु, मनहुँ, मानो, जानेहुँ, जानो आदि)
उप्रेक्षा अलंकार के उदाहरण—
उदाहरण -1
सोहत ओढ़ै पीटु पटु, स्याम सलोने गात।
मनौ नीलमनणि-सैल पर, आतपु परयौ प्रभात।।
स्पष्टीकरण— उपर्युक्त उदाहरण में श्रीकृष्ण के श्याम शरीर (उपमेय) पर नीलमणियों के पर्वत (उपमान) की तथा पीट-पट (उपमेय) पर प्रभात की धूप (उपमान) की सम्भावना की गई है; अत: यहाँ उप्रेक्षा अलंकार है।
उदाहरण –2
मुख मानो चन्द्र है।
स्पष्टीकरण— यहाँ मुख (उपमेय) का चन्द्र (उपमान) से सम्भावना की गई है। अत: यह उप्रेक्षा अलंकार का उदाहरण है।
उप्रेक्षा अलंकार के प्रकार—
उप्रेक्षा अलंकार के तीन प्रमुख भेद निम्नलिखित है—
(क). वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार
(ख). हेतूत्प्रेक्षा अलंकार
(ग). फलोत्प्रेक्षा अलंकार
(क). वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा—
वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार में एक वस्तु की दूसरी वस्तु के रूप में सम्भावना की जाती है।
वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण—
सोहत ओढ़ै पीट पटु, स्याम सलोने गात।
मनौ नीलमनणि-सैल पर, आतपु परयौ प्रभात।।
स्पष्टीकरण— यहाँ श्रीकृष्ण के श्याम-गात में नील-मणि सैल की तथा पीट-पटु में प्रभात के आतप (धूप) की सम्भावना करने से वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार है।
(ख). हेतूत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा —
जहाँ अहेतु में हेतू मानकर सम्भावना की जाती है, वहाँ हेतूत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
हेतूत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण—
मानहुँ विधि वन-अच्छ छवि, स्वच्छ राखिबै काज।
दृग-पग पौंछन कौ करे, भूषन पायन्दाज।।
स्पष्टीकरण— उपर्युक्त उदाहरण में हेतु आभूषण न होने पर भी उसकी पायदान के रूप में उप्रेक्षा की गयी है, अत: यहाँ हेतूत्प्रेक्षा अलंकार है।
(ग). फलोत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा—
जहाँ अफल में फल की सम्भावना का वर्णन हो वहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
फलोत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण—
पुहुप सुगन्ध करहिं एहि आसा।
मकु हिरकाइ लेइ हम्ह पासा।।
स्पष्टीकरण— पुष्पों में स्वाभाविक रुप से सुगन्ध होती है, किन्तु यहाँ जायसी ने पुष्पों की सुगन्ध विकीर्ण होने का फल बताया है। कवि का तात्पर्य यह है कि पुष्प इसलिए सुगन्ध विकीर्ण है कि सम्भवत: पदमावती उन्हें अपनी नासिका से लगा ले। इस प्रकार उपर्युक्त उदाहरण में अफल में फल की सम्भावना की गई है। अत: यहाँ फलोत्प्रेक्षा अलंकार है।
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